मनुष्य जीवन का उद्देश्य

 *मनुष्य जीवनका ऊदेश्य*


*"मनुष्य शरीर धारण करना और मनुष्यताको धारण करना दोनों में बहुत अंतर है।"*

        *"मनुष्य शरीरको धारण किए हुए तो इस पृथ्वी पर करोड़ों व्यक्ति हैं। परंतु मनुष्यताको धारण करने वाले, उनकी तुलनामें बहुत ही कम लोग हैं।"*

        आप सोचेंगे, कि *"मनुष्य शरीरको धारण करनेमें और मनुष्यताको धारण करनेमें क्या अंतर है?"*

संसारमें लाखों प्रकारके प्राणी हैं। गाय घोड़े हाथी बंदर कुत्ते गधे मनुष्य आदि। ये सब योनियां उनके पूर्व जन्मोंके कर्मों का फल है। *"जिस आत्माने पूर्व जन्ममें अच्छे कर्म किए, उसको ईश्वरने मनुष्य जन्म दिया। जिसने अच्छे कर्म नहीं किए, उसे ईश्वरने पशु पक्षी कीड़ा मकोड़ा आदि शरीर दिया।"*

लाखों योनियोंमें केवल मनुष्य योनि ही सबसे उत्तम मानी जाती है और है भी। *"क्योंकि उसे ईश्वरने बहुत सी विशेष सुविधाएं दी हैं। जैसे कि ईश्वरने मनुष्योंको बहुत अच्छी बुद्धि दी है। बोलनेके लिए भाषा दी है। कर्म करनेके लिए दो हाथ दिए हैं। कर्म करनेकी स्वतंत्रता भी दी है और चार वेदोंका ज्ञान भी दिया है। ये सारी सुविधाएं अन्य प्राणियों को नहीं दी।"* 

इन सब सुविधाओंके कारण मनुष्य अन्य प्राणियोंकी तुलना में बहुत अधिक सुखी है। इससे पता चलता है कि *"उसने पूर्व जन्ममें अच्छे कर्म किए। इसलिए उसे सुख देने वाली ये सब विशेष सुविधाएं दी गई।" "अतः मनुष्य शरीर धारण करना बहुत कठिन है। बहुत पुण्य कर्म करने पर ही यह मिलता है।"*

यह तो बात हुई पिछले जन्म के कर्मों के फल की। 

*"अब मनुष्य जन्म धारण करने जैसा कठिन काम करके भी, इस जन्ममें सब लोग मनुष्यताको धारण नहीं कर पा रहे। क्योंकि यह उससे भी अधिक कठिन है।"* 

जैसे कि ईश्वरने जो मनुष्योंको कर्म करनेकी स्वतंत्रता दी है। अब इस जन्ममें मनुष्य लोग इस स्वतंत्रताका बहुत अधिक दुरुपयोग कर रहे हैं। 

*"जैसे झूठ बोलना छल कपट करना धोखा देना अन्याय करना अत्याचार करना दूसरोंका शोषण करना इत्यादि बुरे कर्म कर रहे हैं।"*

        *"जब ऊपर बताई बुद्धि, हाथ, कर्म करनेकी स्वतंत्रता आदि सारी सुविधाओंका कोई व्यक्ति सदुपयोग करता है, अच्छे काम करता है, स्वयं सुखी रहता है, तथा दूसरोंको भी सुख देता है। सबके साथ न्यायपूर्ण व्यवहार करता है। किसीके साथ अन्याय नहीं करता। किसीका शोषण नहीं करता। किसी पर अत्याचार नहीं करता। तो इन्हीं गुणोंको धारण करनेका नाम 'मनुष्यता' है।"*

अब संसारमें सत्य यही है, कि *"मनुष्य शरीरको धारण करनेवाले तो करोड़ों व्यक्ति हैं। परन्तु इस मनुष्यताको धारण करने वाले लोग बहुत कम दिखते हैं। क्योंकि इस प्रकारसे जीवन जीना बहुत कठिन है।"* 

"कठिन भले ही हो फिर भी असंभव नहीं है। कुछ बुद्धिमान तथा पुरुषार्थी लोग इस कठिन तपस्याको करते हैं और मनुष्यताको धारण करके स्वयं भी सुखसे जीते हैं तथा दूसरोंको भी सुख देते हैं।"*

         *"आप सबको भी इस 'मनुष्यता' को धारण करनेका पूर्ण प्रयत्न करना चाहिए, जिससे कि आपका यह जन्म भी उत्तम सुखदायक हो और अगला भी।"*


#कहानी , #काम_की_बात

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