आत्मबोध



 आत्मबोध 


इस सृष्टि की रचना जितनी अद्भुत है, उससे भी अधिक सांसारिक जीवन जटिल है। आदि काल से अब तक ऋषि-मुनियों ने इसे जानने का प्रयास किया है और करते आ रहे हैं। ईश्वर ने अन्य जीवों से इतर मनुष्य नामक प्राणी बनाया। उसे ज्ञान, बुद्धि और विवेक दिया। फिर भी क्या मनुष्य अपना जीवन ठीक से जी पा रहा है? नहीं। वह यश-अपयश, दुख-सुख, मान-अपमान और जय-पराजय के बीच जीवन बिता रहा है। रात-दिन भौतिक सुख के पीछे अपनी मानसिक शांति खो रहा है। यह जानते हुए भी कि मृत्यु के बाद यह नश्वर संसार और भौतिक वस्तुएं यहीं छूट जाएंगी, फिर भी वह इनका मोह नहीं छोड़ पाता। यही कारण है कि वह अन्य जीव जंतुओं की भांति कर्मो का भोग करते हुए पुनर्जन्म को प्राप्त होता है। दुख, अवसाद, मानसिक-शारीरिक क्लेश उनका पीछा नहीं छोड़ते। इनसे छुटकारा पाने का एक ही उपाय है-आत्मबोध! जब तक आत्मज्ञान नहीं होगा तब तक मनुष्य इसी प्रकार कष्ट भोगता रहेगा। ईश्वर क्या है? हम क्या हैं, जीवन का लक्ष्य क्या है? आदि बातों का ज्ञान होना ही आत्मबोध है।


आत्मज्ञान हो जाने के बाद सांसारिक जीवन का मोह कम होने लगता है और मनुष्य ईश्वरोन्मुख हो जाता है। यही अध्यात्म है। इसका ज्ञान एक योग्य गुरु से प्राप्त होता है। गुरु आगे का मार्ग प्रशस्त करता है। इसके अतिरिक्त सद्ग्रंथों का अध्ययन, सत्संग और ईश्वर का ध्यान करना उपयोगी होता है। मानव जीवन का लक्ष्य है परोपकार, प्रेम, सहानुभूति, दया और प्रत्येक जीव के प्रति संवेदनशील होना। जब हमें आत्मबोध हो जाएगा तो हम सबके साथ वही व्यवहार करेंगे जैसा हम अपने प्रति चाहते हैं। ईश्वर की बनाई हुई सृष्टि के प्रत्येक जीव के साथ प्रेम करना ही ईश्वर भक्ति है। ईश्वर की सृष्टि अति सुंदर है इसे बिगाड़ने की चेष्टा कदापि नहीं करनी चाहिए। जो हमें प्राप्त है उसका उचित ढंग से उपयोग करने में ही जीवन का सुख है। यदि हम एकांत में अकेले बैठकर ईश्वर से प्रार्थना करें तो निश्चित रूप से हमें आत्मबोध होगा। आत्मबोध हो जाने के बाद यह संसार निरर्थक लगने लगेगा। मन ईश्वर की ओर उन्मुख हो जाएगा, जहां परमशांति और परमानंद की प्राप्ति होगी।

     

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