दृढ़ता ही सफलता

दृढ़ता ही सफलता 


एक गांव में एक किसान रहता था| वह आवश्यकतानुसार एक कुआं खोदना चाहता था|काफी विचार करने के पश्चात् एक दिन उसने कुआं खोदना शुरू किया| कुछ फीट तक खुदाई करने पर भी जब उसे पानी नहीं दिखाई दिया तो वह निराश हो गया। निराशा की उसी दशा में फिर उसने दूसरी जगह खुदाई की किंतु पानी कहीं पर भी नहीं निकला|इस प्रकार उसने 6-7 जगहों पर खुदाई की किंतु उसे पानी नसीब नहीं हुआ| वह बेहद दुखी और निराश मन से घर लौट आया|


अगले दिन उसने सारी बात एक_बुजुर्ग व्यक्ति को बताई|उस व्यक्ति ने गंभीरता से उसकी बातों पर विचार कर उसे समझाते हुए कहा- “तुमने पांच अलग-अलग जगहों पर 6-7 फुट के गड्ढे खोदे लेकिन फिर भी तुम्हें कुछ हाथ नहीं लगा| यदि तुम अलग-अलग जगह पर खुदाई न करके एक_ही_स्थान पर इतना खोदते, तो तुम्हें पानी अवश्य मिल जाता|तुमने धैर्य से काम नहीं लिया और थोड़ा-थोड़ा खोदकर अपना निर्णय बदल लिया| आज तुम एकाग्रता से एक ही स्थान पर गड्ढा खोदो और जब तक पानी दिखाई नहीं दे तब तक खोदना जारी रखना| तुम्हें सफलता जरूर मिलेगी|”


उस दिन किसान ने दृढ़ निश्चय करते हुए एक बार फिर खुदाई शुरू कर दी| लगभग 25-30 फुट की खुदाई हो जाने पर खेत से पानी निकल आया| यह देखकर किसान बहुत खुश हुआ और मन ही मन उस व्यक्ति का धन्यवाद करने लगा|


सत्य यही है कि यदि हम धैर्य का दामन छोड़ देंगे तो सफलता अपनी दिशा बदलकर अन्यत्र चली जाएगी। वस्तुत: यदि किसी कार्य को पूरी एकाग्रता के साथ किया जाए तो उसमें सफलता जरूर मिलती है| धैर्य कठिन परिस्थितियों में व्यक्ति की सहनशीलता की अवस्था है जो उसके व्यवहार को क्रोध या खीझ जैसी नकारात्मक अभिवृत्तियों से बचाती है। दीर्घकालीन समस्याओं से घिरे होने के कारण व्यक्ति जो दबाव या तनाव अनुभव करने लगता है उसको सहन कर सकने की क्षमता भी धैर्य का एक उदाहरण है। वस्तुतः धैर्य नकारात्मकता से पूर्व सहनशीलता का एक स्तर है। यह व्यक्ति की चारित्रिक दृढ़ता का परिचायक भी है और यही  *दृढ़ता* हमारे लिए सफलता_का_प्रवेश_द्वार बन जाती है। 


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