अंधकार और चिंतन

 अंधकार और चिंतन 


अंधकार दो प्रकार का होता है। एक रात्रि का और दूसरा विचारों का। आप कुछ भी न करें, तब भी रात्रि का अंधकार तो 10/12 घंटे में स्वयं ही हट जाता है। परंतु जो विचारों का अंधकार है, वह स्वयं नहीं हटता। उसके लिए प्रयत्न करना पड़ता है। चिंतन करना पड़ता है। बुद्धिमत्ता से समस्याओं को सुलझाना पड़ता है। ऐसा पुरुषार्थ करने से वह विचारों का अंधकार दूर हो जाता है।


इन दोनों में से रात्रि का अंधकार इतना खतरनाक नहीं है, जितना कि विचारों का। अतः विचारों के अंधकार से बाहर आने के लिए, ज्ञान रूपी प्रकाश को प्राप्त करने के लिए, व्यक्ति को बुद्धिमत्ता से चिंतन अवश्य करना चाहिए, परन्तु चिंता नहीं।


चिंता और चिंतन, इन दोनों में बहुत अंतर है। चिंता समस्याओं में उलझाती है, और चिंतन समस्याओं को सुलझाता है। जब व्यक्ति चिंता करता है, अर्थात वह ऐसा सोचता है, कि अब यह समस्या आने वाली है, इस को मैं कैसे दूर करूं? मुझे कोई उपाय सूझता नहीं। मेरे पास इतने साधन नहीं हैं, कोई मेरी सहायता करने वाला नहीं है इत्यादि। इस प्रकार से जो व्यक्ति सोचता है, तो उसकी समस्या बढ़ती जाती है, हल नहीं होती। इसका नाम है चिंता करना। ऐसा करने से हानि होती है। क्योंकि ऐसा करने से व्यक्ति की समस्याओं का समाधान करने की  क्षमता और अधिक घट जाती है। तनाव बढ़ जाता है। बुद्धि काम नहीं करती। इसलिए कोई ठीक समाधान प्राप्त नहीं होता। धीरे-धीरे व्यक्ति यदि ऐसी आदत बना ले, तो वह डिप्रैशन में भी जा सकता है। इसलिए चिंता नहीं करनी चाहिए।


चिंतन का अर्थ है, समस्या को सुलझाने के लिए गंभीरता से पूरा प्रयत्न करना। इसमें तीन बातें सोचनी चाहिएं। पहली बात यह सोचनी चाहिए, कि - समस्या क्या है? दूसरी बात यह सोचनी चाहिए, कि - इसका कारण क्या है? यह समस्या क्यों उत्पन्न हो रही है? और तीसरी बात यह सोचनी चाहिए, कि - इसका उपाय क्या है? इसको दूर कैसे करें? इस प्रक्रिया का नाम है चिंतन। चिंतन करने से, ईश्वर की कृपा से, समस्या का कोई न कोई समाधान निकल ही आता है। 


यदि समाधान स्वयं प्राप्त न हो पाए, तो किसी अन्य बुद्धिमान की सलाह लेनी चाहिए, जिसका उस क्षेत्र में अधिक ज्ञान और अनुभव हो। उसकी सलाह से आपकी समस्या हल हो जाएगी, और आप स्वस्थ एवं प्रसन्न रहेंगे। इसलिए चिंता न करें, चिंतन अवश्य करें।


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